इस्लाम यह है ... (इस्लाम के सिद्धान्तों और विशेषताओं का संछिप्त परिचय)

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

इस्लाम यह है ...

(इस्लाम के सिद्धान्तों और विशेषताओं का संछिप्त परिचय)

मैं अति मेहरबान और दयालु अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ।

इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों और उसकी विशेषताओं पर आधारति यह संछिप्त रेखांकन है जिसे अल्लाह की कृपा से पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है:

इस्लाम यह है कि :

आप इस बात पर विश्वास रखें कि इस सृष्टि और इस में मौजूद चीज़ों का एक उत्पत्तिकर्ता और रचयिता है, जो एकमात्र अल्लाह है जिस का कोई साझी नहीं। वह आसमानों के ऊपर है, अपनी सृष्ट से अवगत है, उन्हें देखता और सुनता है। तथा वही इबादत -उपासना और आराधना- का पात्र और आधिकारिक है। आप अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा और उपासना को त्याग दें। तथा आप यह विश्वास रखें कि अल्लाह ने मनुष्य को निरर्थक और अकारण नहीं पैदा किया है, बल्कि उन्हें अपनी उपासना और आराधना के लिए अस्तित्व प्रदान किया है। तथा महाप्रलय के दिन उन्हें पुन: जीवित कर के उठाए गा और संसार में वे जो कुछ कार्य किया करते थे उस का हिसाब लेगा।

इस्लाम यह है कि :

आप इस बात पर विश्वास रखें कि अल्लाह के असंख्य फरिश्ते हैं जो मनुष्य से भिन्न प्रकृति के हैं, जिन्हें अल्लाह ने प्रकाश से पैदा किया है और उनके ज़िम्मे कुछ काम सौंपे हैं। उन्हीं फरिश्तों में से एक `जिब्रील´ हैं जिन्हें अल्लाह ने सन्देष्टाओं पर वह्य (ईश्वाणी) अवतरित करने पर नियुक्त किया था।

इस्लाम यह है कि :

आप इस बात पर विश्वास रखें कि अल्लाह ने सन्देष्टाओं पर किताबें अवतरित की हैं, जैसे तौरात, इन्जील, ज़बूर और उन में अन्तिम पुस्तक क़ुर्आन है जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम (उन पर अल्लाह की कृपा एंव शान्ति हो) पर अवतरित हुई। ये सभी पुस्तकें एकमात्र अल्लाह की इबादत का आदेश देती हैं जिस का कोई साझी नहीं। परन्तु समय बीतने के साथ-साथ ये पुस्तकें परिवर्तन एवं सन्शोधन का निशाना बन गईं। यह परिवर्तन धर्म के दुश्मनों ने किया जो अवैद्ध रूप से लोगों का धन खाते हैं। केवल क़ुर्आन इस परिवर्तन से सुरक्षित रहा जो पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अवतरित हुआ, जो लोगों के सीनों में सुरक्षित है। अल्लाह तआला ने इसे मनुष्य के लिए एक चमत्कार बनाया है तथा इस के नष्ट और परिवर्तित होने से सुरक्षा करने की ज़िम्मेदारी अल्लाह ने स्वयं उठाई है। अल्लाह ने इसे पिछली किताबों पर निरीक्षक और प्रधान बनाया है। इस के अन्दर ऐसे वैज्ञानिक चमत्कार पाए जातें हैं जिन की गवाही वर्तमान काल के महा वैज्ञानिकों ने दी है।

इस्लाम यह है कि :

आप यह विश्वास रखें कि अल्लाह ने आदम को मिट्टी से पैदा किया है और वह सर्व प्रथम मानव हैं। अल्लाह ने उन्हें सन्तान प्रदान किया ताकि उन की परीक्षा करे। परन्तु समय बीतने के साथ-साथ लोग पथ-भ्रष्ट हो गए, शैतान ने उन्हें भटका दिया और वे मूर्तियों को पूजने लगे। चुनाँचे अल्लाह ने मनुष्यों में से संदेष्टा भेजे कि वे लोगों को अल्लाह का संदेश पहुँचायें। और वह संदेश यह था कि एक मात्र अल्लाह की उपासना की जाए जिस का कोई साझी नहीं, संदेष्टाओं का अनुसरण किया जाए और अल्लाह के अतिरिक्त की इबादत और उपासना को त्याग दिया जाए। उन संदेष्टाओं में से (नूह, इब्राहीम, मूसा, ईसा) और उनमे सबसे अन्तिम और समस्त पैग़म्बरों के मुद्रिका मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। किसी मनुष्य का इस्लाम उस समय तक शुद्ध और मान्य नहीं हो सकता जब तक कि वह समस्त पैग़म्बरों पर विश्वास न रखे और उन सब से प्रेम न करे।

इस्लाम यह है कि :

आप यह विश्वास रखें कि इस संसार में जो कुछ भी घटित होता है वह सब अल्लाह की तक़्दीर से होता है, जिसे अल्लाह तआला ने उसके घटित होने से पूर्व ही लिख दिया है, जबकि मनुष्य को असबाब (कारण) अपनाने का आदेश दिया गया है, और वही अपने कार्यें को करने वाला, और लोक-परलोक में उन कार्यों और उनके निष्कर्षों का उत्तरदायी है। अत: उसके लिए कार्य को छोड़ कर तक़्दीर को बहाना बनाना वैध नहीं है। इस अक़ीदा (आस्था) के फलस्वरूप आप शान्ति और चैन का जीवन व्यतीत करें गे।

इस्लाम :

न्याय, एहसान (उपकार एंव भलाई) सिला रेहमी (संबंधियों के साथ सदव्यवहार), सतीत्व (पाकदामनी) और सच्चाई का आदेश देता है। इसी प्रकार समस्त अच्छे गुणों और आचार का आदेश देता है और ज़ुल्म, अन्याय, व्यभिचार, चोरी, लोगों पर अत्याचार करने, निर्दोषों की हत्या करने, झूठ बोलने, एक दूसरे पर गर्व करने से रोकता है। तथा समस्त बुरे गुणों और दुष्ट आचार को नकारता है। कुछ मुसलमानों से जो गलतियाँ (त्रुटियाँ) हो जाती हैं वह इस्लाम का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं, बल्कि वह मात्र उन गलती करने वालों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

इस्लाम:

काले और गोरे, धन्वान और निर्धन, अरबी और अजमी के मध्य कोई अन्तर और भेदभाव नहीं करता है, बल्कि अल्लाह के निकट सब से बढ़ कर सम्मानित और प्रतिष्ठित व्यक्ति वह है जो अल्लाह से सब बढ़ कर डरने वाला (सब से अधिक ईश्भय रखने वाला) है।

इस्लाम:

निरंतर तौबा का आदेश देता है, अत: जिस व्यक्ति ने कोई पाप कर लिया फिर उस पर लज्जित और शर्मिन्दा हुआ, उस गुनाह को त्याग कर अल्लाह से क्षमा याचना किया तो अल्लाह तआला उसे क्षमा कर देगा, उसके और उसकी तौबा के बीच कोई रूकावट नहीं बन सकता ; क्योंकि यह तौबा उसके और अल्लाह के मध्य है जो उसे देखता और सुनता है तथा उसके दिल की बातों से अवगत है।

इस्लाम:

सफाई व सुथराई का हुक्म देता है, और किसी भी स्थान पर पड़ी हुई गंदगी और लोगों को कष्ट पहुँचाने वाली चीज़ों को हटाने का आदेश देता है।

इस्लाम:

नारी का सम्मान करने, खर्च और वरासत में उसे उसका अधिकार देने और भलाई के साथ उसके संग रहन-सहन का आदेश देता है।

इस्लाम:

ज़माने की उन समस्त सम्भावनाओं को प्रयोग में लाने का आदेश देता है जो लोगों के जीवन और उन के रहन-सहन को आसान बनाने में सहयोग करती हैं, जबकि वो अल्लाह के आदर्श के विरूद्ध न हों।

इस्लाम:

के हुदूद (सीमाएं एंव परिभाषाएं) स्पष्ट और आसान हैं, इसमें हर इबादत के धार्मिक नुसूस (प्रमाण) हैं जिनका मुसलमान अनुसरण करता है। ये मनुष्य के प्रस्ताव, विधान और क़रारदाद नहीं हैं, बल्कि ये अल्लाह की ओर से हैं जिन को स्वीकारना और उनके अधीन होना सर्व मानव के लिए अनिवार्य है।

इस्लाम:

अपराधों से लड़ाई करता और उन पर दण्डित करता है ; ताकि लोगों को अपनी जानों और सम्पत्तियों पर सुरक्षा का अनुभव हो। इस्लाम ने पाँच अनिवार्यताओं की सुरक्षा की है : बुद्धि, जान, नस्ल (वंश), धन और धर्म।

इस्लाम यह है कि :

आप प्रति दिन अल्लाह के लिए पाँच नमाज़ें उनके ठीक समय पर, उनकी दुआओं के साथ, उस तरीक़े पर पढ़ें जिसे अल्लाह ने वैध किया है। इसका उद्देश्य मुसलमान को अल्लाह से जोड़ना और संबंधित करना है। (नमाज़ की विधि और समय-सारणी अन्त में देखिए)

इस्लाम :

प्रति वर्ष उस आदमी को जो एक निर्धारित मात्रा में अपने पास धन रखता है, धन का एक साधारण भाग (अनुपात) दरिद्रों के लिए निकालने का आदेश देता है, जिस का नाम `ज़कात´ है, इसका उद्देश्य धन को पवित्र करना और गरीबों पर दया करना है।

इस्लाम:

साल के एक महीने का रोज़ा रखने का आदेश देता है, अर्थात् फज्र उदय होने से लेकर सूर्यास्त तक (अल्लाह तआला की उपासना की नीयत से) खाने-पीने से रूक जाना। इस महीने का नाम `रमज़ान´ है, अल्लाह ने इसे लोगों को गरीबों की याद दिलाने, स्वास्थ्य की रक्षा और बन्दे की इताअत (आज्ञापालन) को जाँचने के लिए वैध किया है।

इस्लाम:

उस आदमी को जो हज्ज करने की शक्ति रखता है, पैग़म्बर इब्राहीम, ईसा, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और इनके अतिरिक्त अन्य सन्देष्टाओं का अनुसरण करते हुए, जीवन में एक बार हज्ज करने - अर्थात् मक्का जाकर वहाँ कुछ विशिष्ट कार्य करने- का आदेश देता है।

इस्लाम यह है कि :

आप इस बात पर विश्वास रखें कि पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम समस्त मानव जाति की ओर पैग़म्बर बनाकर भेजे गए हैं, और आप का संदेश वही है जो आप से पूर्व पैग़म्बरों का संदेश था, केवल अहकाम (धर्म-शास्त्र) में कुछ अन्तर है। और जो भी आदमी आप के बारे में सुने उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह आप पर विश्वास रखे और आप जो धर्म-शास्त्र ले कर आए हैं उस का पालन करे। अल्लाह इस्लाम के अतिरिक्त कोई अन्य धर्म स्वीकार नहीं करेगा।

इस्लाम यह है कि :

हम अल्लाह की इबादत (उपासना) उसी विधि पर करें जिसे ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लेकर आए हैं, और वह सहीह (शुद्ध रूप से प्रमाणित) हदीसों में उल्लिखित है जिन्हें हदीस के इमामों उदाहरण के तौर पर इमाम बुखारी और इमाम मुस्लिम आदि ने वर्णन किया है। तथा आप खुराफात (मिथ्याओं) ख्वाबों (सपनों) और झूठी (अशुद्ध) हदीसों से दूर रहें।

इस्लाम :

एक ऐसा धर्म है जो ख़ुराफात (मिथ्यावाद) और अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य की दासता, आराधना और उपासना से बुद्धि को मुक्ति दिलाता है। इसी कारणवश जिस समय वह इब्रत पकड़ने (परलोक का भय अनुभव करने) के लिए क़ब्रों की ज़ियारत करने पर उभारता है, वहीं पर वह उन क़ब्रों की परिक्रमा करने, या उनके पास दुआ करने, या क़ब्र में गाड़े हुए मृतकों को पुकारने या उनका वसीला ढूँढ़ने से रोकता है।

इस्लाम :

अल्लाह पर भरोसा करने और असबाबा (कारणों) को अपनाने का आदेश देता है। तथा तावीज़-गण्डा लटकाने, जादूगरों, काहिनों (पुरोहितों) इन्द्र जालियों का सहारा ढूँढ़ने से रोकता है जो कि अवैद्ध रूप से लोगों का धन खाते हैं।

इस्लाम :

में दो ईद (त्योहार अथवा खुशियों के अवसर) हैं : ईदुल-फित्र और ईदुल-अज़्हा, और आजकल लोगों ने जो अवैद्ध ईद के अवसर (त्योहार) अविष्कार कर लिए हैं, इस्लाम उन्हें नहीं स्वीकरता।

इस्लाम :

अपने मानने वालों को शरीअत (धर्म-शास्त्र) के अहकाम ; उदाहरण स्वरूप : पवित्रता, नमाज़, ज़कात, रोज़ा, हज्ज, मामलात . . . आदि की शिक्षा और ज्ञान प्राप्त करने का आदेश देता है।

इस्लाम यह है कि :

आप "अश्हदो अन् ला इलाहा इल्लल्लाह, व अश्हदो अन्ना मुहम्मदन रसूलुल्लाह" ( मैं शहादत -गवाही- देता हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सच्चा पूज्य नहीं, तथा मैं शहादत देता हूँ कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के संदेष्टा हैं) कहते हुए शहादतैन का इक़रार करें। इस इक़रार के द्वारा आप मुसलमान हो जाएं गे, और अब आप पर अनिवार्य है कि आजीवन इन दोनों गवाहियों के तक़ाज़ों के अनुसार कार्य करें। इस से आप स्वर्ग के पात्र होंगे और नरक से मुक्ति पा जाएंगे।

इस्लाम:

निम्नलिखित स्थितियों में आप के ऊपर अपने सम्पूर्ण बदन को धोना (अर्थात् स्नान करना) अनिवार्य कर देता है : जब आप इस्लाम धर्म स्वीकार करें, शह्वत के साथ वीर्य पात होने पर, और जब मासिक धर्म और प्रसव वाली स्त्री पवित्र हो जाए।

इस्लाम :

आप को, जब आप नमाज़ पढ़ने की इच्छा करें, निम्नलिखित तरीक़े पर पवित्रता प्राप्त करने का आदेश देता है :

(वुज़ू का तरीक़ा)

1- दोनों हथेलियों को पानी से एक, या दो, या तीन बार धोएं।

2- एक, या दो, या तीन बार कुल्ली करें और नाक में पानी डाल कर उसे झाड़ दें।

3- एक, या दो, या तीन बार अपने चेहरे को धोएं।

3- एक, या दो, या तीन बार अपने दाहिने हाथ को, फिर बायें हाथ को हथेलियों से लेकर कोहनियों तक धोएं।

4- अपने सिर और दोनों कोनों का पानी से मसह करें।

5- एक, या दो, या तीन बार अपने दाहिने पाँव, फिर बायें पाँव को टखनों सहित धोएं।

इस्लाम :

आप को निम्नलिखित तरीक़े पर नमाज़ पढ़ने का आदेश देता है :

(नमाज़ का तरीक़ा)

1- आप क़िब्ला (काबा) की ओर मुँह कर के खड़े हों और अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कानों के बराबर तक उठाते हुए "अल्लाहु अक्बर" कहें, फिर अपने दाहिने हाथ को अपने बायें हाथ पर रख कर अपने सीने पर बाँध लें, फिर इस्तिफ्ताह की दुआ पढ़ें :

سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ وَبِِحَمْدِكَ وَتَبَارَكَ اسْمُكَ وَتَعَالَى جَدُّكَ وَلَا إِلَهَ غَيْرُكَ

उच्चारण:- सुब्हानकल्लाहुम्मा व बिहम्दिका व तबारकस्मुका व तआला जद्दुका व ला इलाहा गैरुका।

"ऐ अल्लाह ! तू पाक है और हम तेरी प्रशंसा करते हैं, तेरा नाम बरकत वाला है और तेरी (महिमा) शान ऊँची है, और तेरे सिवा कोई सच्चा मअ़बूद (पूज्य) नहीं।" 2- फिर सूरतुल फातिहा पढ़ें :

أعوذ بالله من الشيطان الرجيم بسم الله الرحمن الرحيم

الحمد لله رب العالمين الرحمن الرحيم مالك يوم الدين إياك نعبد و إياك نستعين اهدنا الصراط المستقيم صراط الذين أنعمت عليهم غير المغضوب عليهم ولا الضالين

उच्चारण : अऊज़ो बिल्लाहि मिनश्-शैतानिर्रजीम। बिस्मिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम।

अल्ह़म्दो लिल्लाहि रिब्बल-आलमीन, अर्रहमानिर्रहीम, मालिके-यौमिद्दीन, इय्याका-नअ़बुदो व इय्याका-नस्तईन, इह्दिनस्सिरातल-मुस्तक़ीम, सिरातल्लज़ीना अन्अम्ता अलैहिम, ग़ैरिल-मग़ज़ूबे अलैहिम वलज़्ज़ाल्लीन। (आमीन)

3- फिर क़ुर्आन की कोई छोटी सूरत, उदाहरण स्वरूप सूरतुल इख़्लास पढ़ें:

قل هو الله احد الله الصمد لم يلد و لم يولد ولم يكن له كفواً احد

उच्चारण: क़ुल-हुवल्लाहो अहद्, अल्लाहुस्समद्, लम-यलिद् व लम-यूलद्, वलम-यकुन् लहू कुफुवन् अहद्।

4- फिर "अल्लाहु अक्बर" कहें और रूकू करें, और उस में "सुब्हाना-रब्बियल अज़ीम" पढ़ें, इसे कई बार पढ़ना श्रेष्ठ है।

6- फिर रूकू से सिर उठाएं और "समिअल्लाहो लिमन हमिदह्" कहते हुए खड़े हो जाएं और "रब्बना व लकल हम्द्" कहें।

7- फिर "अल्लाहु अक्बर" कहते हुए सज्दे में जाएं और सज्दे में "सुब्हाना-रब्बियल आला" कहें, इसे कई बार पढ़ना श्रेष्ठ है।

8- फिर "अल्लाहु अक्बर" कहें और बैठ जाएं और "रब्बिग़-फिर्ली" पढ़ें, इसे एक से अधिक बार पढ़ना श्रेष्ठ है।

9- फिर "अल्लाहु अक्बर" कहते हुए सज्दे में जाएं और उस में "सुब्हाना-रब्बियल आ'ला" कहें, इसे कई बार पढ़ना श्रेष्ठ है।

10- फिर "अल्लाहु अक्बर" कहें और दूसरी रक्अत के लिए खड़ा हो जाएं और उसी प्रकार करें जैसे पहली रक्अत में किया था।

11- जब दूसरी रक्अत में सज्दे से फारिग़ हो जाएं तो अल्लाहु अक्बर कह कर बैठ जाएं फिर प्रथम तशह्हुद पढ़ें, और वह यह है :

التَّحِيَّاتُ لِلَّهِ وَالصَّلَوَاتُ وَالطَّيِّبَاتُ السَّلَامُ عَلَيْكَ أَيُّهَا النَّبِيُّ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ السَّلَامُ عَلَيْنَا وَعَلَى عِبَادِ اللَّهِ الصَّالِحِينَ أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ

उच्चारण:- अत्तहिय्यातो, लिल्लाहे, वस्सला-वातो, वत्तैय-इबातो, अस्सलामो अलैका, अय्योहन्नबिय्यो, व रहमतुल्लाहे व-बरकातुहू , अस्सलामो अलैना, व-अला इबादिल्लाहिस्सालिहीन, अश्हदो अन्-ला-इलाहा इल्लल्लाहू , व-अश्हदो अन्ना मुहम्मदन, अब्दुहू व-रसूलुह।

"सभी प्रशंसायें, नमाज़ें और पवित्र चीज़ें अल्लाह के लिए हैं, ऐ नबी! आप पर सलाम, अल्लाह की रहमत और उसकी बरकतें अवतरित हों, सलाम हो हम पर और अल्लाह के सदाचारी बन्दों पर, मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उस के बन्दे और संदेश्वाहक हैं।"

12- यदि नमाज़ दो रक्अत वाली है तो अन्तिम तशह्हुद पूरा करें जिसकी व्याख्या आगे आ रही है, फिर सलाम फेर दें। और यदि नमाज़ दो रक्अत से अधिक है तो प्रथम तशह्हुद पढ़ने के बाद खड़े हो जाएं और उसी तरह करें जैसे पहले कर चुके हैं।

13- नमाज़ के अन्त में "अल्लाहु अक्बर" कह कर बैठ जाएं और प्रथम तशह्हुद पढ़ें, फिर अन्तिम तशह्हुद पढ़ें, जो यह है :

اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا بَارَكْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ

उच्चारण:- अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद, व अला आले मुहम्मद, कमा सल्लैता अला इब्राहीमा व अला आले इब्राहीम, इन्नका हमीदुम मजीद, अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मद, व अला आले मुहम्मद, कमा बारकता अला इब्राहीमा व अला आले इब्राहीम, इन्नका हमीदुम मजीद।

"ऐ अल्लाह! तू रहमत बरसा मुहम्मद पर और मुहम्मद की सन्तान पर जिस प्रकार तू ने इब्राहीम और इब्राहीम की सन्तान पर रहमत बरसाया, नि:सन्देह तू सराहनीय और महान है। ऐ अल्लाह! बरकत अवतरित कर मुहम्मद पर और मुहम्मद की सन्तान पर जिस प्रकार तू ने बरकत अवतरित किया इब्राहीम पर और इब्राहीम की सन्तान पर, नि:सन्देह तू सराहनीय और महान है।"

14- अन्तिम तशºहुद के बाद यह दुआ पढ़ें :

اَللَّهُمَّ رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً ، اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ جَهَنَّمَ وَمِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ وَمِنْ فِتْنَةِ الْمَحْيَا وَالْمَمَاتِ وَمِنْ شَرِّ فِتْنَةِ الْمَسِيحِ الدَّجَّالِ

उच्चारण:- अल्लाहुम्मा रब्बना आतिना फिद्-दुन्या हसा-नह, व फिल आखिरते हसा-नह। अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका मिन अज़ाबि जहन्नम, व मिन अज़ाबिल क़ब्र, व मिन फित्नतिल मह्या वल ममात, व मिन शर्रे फित्नतिल मसीहिद्दज्जाल।

15- फिर अपने दायें मुड़ कर (( السَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ )) "अस्सलामो अलैकुम व रह्मतुल्लाह" कहें, फिर अपने बायें मुड़ कर((السَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ)) "अस्सलामो अलैकुम व रह्मतुल्लाह" कहें। इसी पर नमाज़ संपन्न हो गई।

(पाँच समय की नमाज़ों का समय और उनकी रक्अतों की संख्या)

क्र.

नमाज़

रक्अतें

समय

1

फज्र

2

फज्र उदय होने से लेकर सूरज के निकलने तक

2

ज़ुहर

4

सूरज ढलने से लेकर हर चीज़ का साया उसके समान होने तक

3

अस्र

4

किसी भी चीज़ का साया उसके समान हो जाने से लेकर सूरज के पीला होने तक

4

मग़्रिब

3

सूरज डूबने से लेकर उषा (सूरज डूबने के पश्चात पच्छिम की दिशा में प्रकट होने वाली लाली) के समाप्त होने तक

5

इशा

4

उषा (सूरज डूबने के पश्चात पच्छिम की दिशा में प्रकट होने वाली लाली) के समाप्त होने से लेकर मध्य रात तक


(अनुवादक : अताउर्रहमान ज़ियाउल्ला)

टिप्पणियाँ

  1. इस्लाम के सिद्धान्तों पर आपने सारगर्भित जानकारी दी है. आपका स्वागत है.

    - सुलभ

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  2. अस्सलाम- आलीकुम, आपका इस्तकबाल है.दीन की बुनयादी चीजी बताकर आप बहुत ही उम्दा काम कर रहे हैं.जज़ाक-अल्लाह खैर! कभी मौक़ा मिले तो हमारी कोशिशों को भी देखें और माकूल राय दें, मशकूर हूँगा.http://deen-dunya.blogspot.com

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