रमज़ान के बाद क्या करें ?
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
इस्लामी भाईयो! कल तक हम रमज़ान के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे, फिर उसके आगमन पर एक दूसरे को बधाई दे रहे थे, फिर देखते देखते उसके शबो
रोज़ बड़ी तेज़ी से गुज़र गए और अब वह हम से विदा हो चुका है। हम ने इस महीने में जो कुछ
अच्छा या बुरा किया है उसके साथ उसका रजिस्टर बंद हो चुका है जो महाप्रलय के दिन ही
खोला जायेगा। फिर यह रमज़ान या तो हमारे हक़ में गवाही देगा या इसकी गवाही हमारे खिलाफ
होगी।
इसके अंदर नसीहत हासिल करने वालों के लिए नसीहत और ईश्भय रखने
वालों के लिए सीख है कि इसी तरह हमारी आयु भी एक एक कर गुज़र जायेगी और एक दिन हम इस
दुनिया से विदा ले लेंगे!
भाग्यशाली है वह व्यक्ति जिसने इस महीने से भरपूर लाभ उठाया
और रमज़ान उसके हक़ में गवाही देनेवाला बन गया! . .
दुर्भाग्यपूर्ण और सांत्वना के योग्य है वह व्यक्ति जिसने इस महीने को नष्ट
कर दिया या इसमें लापरवाही और कोताही से काम लिया! . .
इस्लामी भाईयो! हमें चाहिए कि रमज़ान के बाद अपनी स्थिति का निरीक्षण करें और रमज़ान के दौरान अपनी
स्थिति से उसकी तुलना करें। इस अवसर पर कुछ लाभदायक बातें आपकी सेवा में प्रस्तुत की
जा रही हैं जो अल्लाह की कृपा से इस संबंध में सहायक सिद्ध होंगी कि हमें रमज़ान के
बाद क्या करना चाहिए।
सर्व प्रथम :
ऐ रमज़ान में अच्छे कार्य करने वाले!
जिसने परिश्रम करके रोज़ा रखा और रात को नमाज़ों में गुज़ारा, अल्लाह तआला आपकी नेकी को स्वीकार करे, आपके मार्गदर्शन में वृद्धि करे, आपको ईश्भय और परहेज़गारी प्रदान करे, यदि आप ऐसे लोगों में से हैं जिन्हें
अल्लाह तआला ने रमज़ान के महीने में नेक कार्य करने की तौफीक़ दी है, तो अब आपके लिए यह बाक़ी रह गया है कि अल्लाह तआला से दुआ करें कि वह आपके कार्य
को क़बूल करे और उसे खालिस अपने लिए बनाए और आपको बड़ा अज्र व सवाब प्रदान करे। क्योंकि
नेक लोगों की विशेषता यह होती है कि वे किसी अमल से धोखे में नहीं पड़ते हैं, बल्कि उनके दिलों में भय होता है, वे अचानक मौत के धर पकड़ने से डरते रहते
हैं।
उम्मुल मोमिनीन आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि मैं ने कहा:
ऐ अल्लाह के पैगंबर! अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान:
﴿وَالَّذِينَ يُؤْتُونَ
مَا آتَوا وَقُلُوبُهُمْ وَجِلَةٌ أَنَّهُمْ إِلَى رَبِّهِمْ رَاجِعُونَ ﴾ [المؤمنون
: 60 ].
“और जो लोग देते हैं जो कुछ वे देते हैं जबकि
उन के दिल भयभीत होते हैं कि वे अपने पालनहार की ओर लौटने वाले हैं।” (अल-मोमिनून: 60)
से अभिप्राय क्या वह व्यक्ति है जो व्यभिचार करता है, चोरी करता है, शराब पीता है और इसके बावजूद वह अल्लाह से डरता है ? तो आप ने फरमाया: ‘‘नहीं, बल्कि वह ऐसा व्यक्ति है जो नमाज़ पढ़ता है, रोज़ा रखता है और सदक़ा व खैरात करता
है, इसके बावजूद वह अल्लाह सर्वशक्तिमान से डरता रहता है।” (मुस्तद्रक हाकिम भाग-2, हदीस संख्या: 3486)
इस्लामी भाईयो! आप ने अल्लाह की इबादत में कितना भी संघर्ष किया हो लेकिन आपका हाल यही होना चाहिए
कि आपको उसके क़बूल न होने का डर लगा रहे, आपको इस बात का भय हो कि कहीं आपके
दिल में कोई खोट न रहा हो जो अल्लाह तआला पर रहस्य नहीं रह सकता। अतः आप अपने पूरे
जीवन में भरपूर संघर्ष करते रहें ताकि परलोक के दिन पुरस्कृत किए जाएं।
और अगर आप ने रमज़ान में बुरे कार्य किए हैं और
इस बहुमूल्य अवसर को नष्ट कर दिया है या इस में लापरवाही और कोताही से काम लिया है!
तो अल्लाह सर्वशक्तिमान की यह दया और कृपा है कि उसने प्रतिष्ठित
लिखनेवाले फरिश्तों के द्वारा हमारे पाप के लिखे जाने से पूर्व हमें तौबा और पश्चाताप
करने का अवसर दिया है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः “बायें ओर वाला फरिश्ता
दोषी मुसलमान बंदे से अपने क़लम को छः घंटा उठाए रखता है, यदि उसने पश्चाताप कर लिया और अल्लाह तआला से क्षमायाचना कर लिया तो वह क़लम रख
देता है, अन्यथा वह एक पाप लिख दिया जाता है।” (अस्सिलसिला अस्सहीहा: 1201)
तथा अल्लाह तआला बराबर रात को अपना हाथ फैलाता है ताकि दिन में
पाप करनेवाला तौबा कर ले,
और दिन को अपना हाथ फैलाता है ताकि रात में पाप करनेवाला तौबा
कर ले।
अतः आप उन लोगों में से न बनें जो अल्लाह तआला का भया नहीं रखते
और रात दिन गुनाह पर गुनाह किऐ जाते हैं, आप तौबा की तरफ जल्दी करें, तौबा का द्वार खुला हुआ है, आप जहाँ भी आएं जाएं इस बात को न भूलें कि
आप अल्लाह तआला के निरीक्षण में हैं। तथा आप अल्लाह की दया से निराश न हों, निःसंदेह अल्लाह तआला सभी गुनाहों को क्षमा कर देता है, इसलिए आप जल्दी करें संकोच में न पड़ें। और हाँ, आपके दिल में यह बात न
पैदा हो कि मेरे गुनाह बहुत अधिक हैं उनके साथ तौबा करने से कुछ नहीं होगा, मैं ने कोई भी गुनाह नहीं छोड़ा है जिसे न किया हो! क्योंकि अल्लाह तआला फरमाता
है: “ऐ आदम के बेटे! अगर तेरे गुनाह आकाश की ऊँचाई तक पहुँच
जाएं फिर तू मुझसे क्षमायाचना करे, तो मैं तुझे क्षमा कर दूँगा और मुझे
कोई परवाह नहीं, ऐ आदम के बेटे! यदि तू मेरे पास धरती भर गुनाह लेकर आए फिर मुझसे इस हालत में मुलाक़ात
करे कि तू मेरे साथ किसी को साझी न ठहराता हो, तो मैं तुझे उसी के बराबर क्षमा प्रदान
करूँगा।”
(सहीहुल जामे)
दूसरा: हम ने रमज़ान से क्या लाभ प्राप्त
किया ?
इस्लामी भाईयो! हम रमज़ान को अलविदा कह चुके हैं, क़ुरआन, तक़्वा व परहेज़गारी, धैर्य, संघर्ष, दया, क्षमा और नरक से मुक्ति का महीना हमसे रूख्सत हो चुका है। लेकिन प्रश्न यह है कि
हमने उससे कितना लाभ उठाया है, क्या हमने रोज़े का सबसे बड़ा उद्देश्य तक़्वा
(ईश्भय) प्राप्त किया ?
... क्या हमने रमज़ान के पाठशाला से मुत्तिक़यों का प्रमाण
पत्र हासिल किया है ?! क्या हमने इस महीने में आज्ञाकारिता पर सब्र, धैर्य और सहनशीलता से काम
लेना और अवज्ञा से सब्र किये रहना (यानी उपेक्षा करना) सीखा ?
क्या हमने अपने आपको विभिन्न प्रकार के संघर्ष पर प्रशिक्षित
किया ?!
क्या हमने अपनी इच्छाओं से संर्घर्ष किया और उस पर गालिब रहे
?!
इस तरह के बहुत से प्रश्न एक सच्चे मुसलमान के दिल में पैदा
होते हैं . . जिसे उसे चाहिए कि अपने आप से पूछे और सच्चार्ह के साथ उसका उत्तर दे:
कि मैं ने रमज़ान से क्या लाभ प्राप्त किया ?
रमज़ान ईमान का एक पाठशाला है . . यह एक आत्मिक ईंधन का स्थल
है जिससे साल के अवशेष हिस्से के लिए ईंधन जुटाया जाता है।
जो आदमी रमज़ान के महीन में सीख नहीं लेगा, नसीहत नहीं पकड़ेगा, लाभ नहीं उठायेगा, अपने जीवन में परिवर्तन नहीं लायेगा और अपनी स्थिति को नहीं बदलेगा, वह ऐसा कब करेगा ?!
वास्तव में यह परिवर्तन का पाठशाला है, जिसमें हम अल्लाह की शरीअत के विरूध अपने कार्यों, स्वभावों, व्यवहारों और आचरण को बदल सकते हैं। क्योंकि:
﴿إِنَّ اللَّهَ لا
يُغَيِّرُ مَا بِقَوْمٍ حَتَّى يُغَيِّرُوا مَا بِأَنفُسِهِمْ ﴾ [الرعد :11]
“अल्लाह तआला किसी कौम की स्थिति को नहीं
बदलता है यहाँ तक कि वे स्वयं अपने अंदर बदलाव ले आएं।” (सूरतुर-रअद: 11).
खुदा ने आज तक उस क़ौम की
हालत नहीं बदली
न हो जिसको ख्याल खुद अपनी
हालत के बदलने का
तीसरा : अपने किए पर पानी मत फेरें
उस औरत की तरह न हो जाएं जिसने अपने काते हुए सूत को टुकड़े टुकड़े
कर दिया!!
यदि आप ने रमज़ान से लाभ उठाया है, और आपके अंदर मुत्तक़ियों के गुण पैदा हो गए हैं, तो इस पर अल्लाह तआला का
गुणगान और उसकी स्तुति करें, उसके आभारी बनें और इस स्थिति पर मृत्यु
आने तक सुदृढ़ रहने का अल्लाह तआला से प्रश्न करें।
रमज़ान के बाद अवज्ञा, पाप, और बुराईयों की ओर पलटने
और आज्ञाकारिता को त्यागने से परहेज़ करें, आज्ञाकारिता की नेमत का आभास करने के
बाद अवज्ञा और अवहेलना के जहन्नम में कूदने से दूर रहें !!
बंदे का रमज़ान के बाद निरंतर नेकी करते रहना उसके अमल के क़बूल
होने का सबसे स्पष्ट प्रमाण है। जबकि रमज़ान के बाद बुराई की तरफ पलट जाना और नेकियों
को त्याग कर देना, उसके दुर्भाग्यपूर्ण होने की पहचान है।
बिश्र अल-हाफी से कहा गया कि: कुछ लोग केवल रमज़ान में अल्लाह
की इबादत में परिश्रम करते हैं, तो उन्हों ने कहा: “वे लोग कितने बुरे हैं जो अल्लाह तआला को वास्तविक रूप से केवल रमज़ान में पहचानते
हैं, निःसंदेह नेक आदमी वह है जो साल भर अल्लाह की इबादत करता है और उसमें परिश्रम करता
है।”
चौथा : मृत्यु के आने तक अपने पालनहार
की उपासना करें
बंदे को अल्लाह तआला के आज्ञापालन पर निरंतर व सदैव क़ायम रहना
चाहिए, ऐसा न हो कि वह किसी महीने में अल्लाह की उपासना करे और किसी में न करे, या एक स्थान पर इबादत करे और दूसरे पर न करे, ऐसा कदापि नहीं होना चसहिए!!
बल्कि उसे ज्ञात रहना चाहिए कि रमज़ान का पालनहार ही शेष दिनों और महीनों का भी पालनहार
है . . अल्लाह तआला ने फरमाया:
﴿فَاسْتَقِمْ كَمَا أُمِرْتَ وَمَنْ تَابَ مَعَك﴾ [هود : 112]
“आप उसी तरह जमे रहिए जैसा कि आपको आदेश दिया
गया है और वे लोग भी जो आपके साथ तौबा कर चुके हैं।” (सूरत हूद: 112)
इस्लामी भाईयो ! मोमिन का अमल समाप्त नहीं होता है यहाँ तक कि
उसकी मृत्यु आ जाए, हसन बसरी रहिमहुल्लाह ने फरमाया: अल्लाह तआला ने मोमिन के अमल के लिए मृत्यु के
सिवा कोई अंत नही बनाया है,
फिर यह आयत तिलावत की:
﴿ وَاعْبُدْ رَبَّكَ
حَتَّى يَأْتِيَكَ الْيَقِينُ ﴾ [الحجر:99]
“अपने रब की उपासना करो यहाँ तक कि तुम्हारे
पास मृत्यु आ जाए।” (सूरतुल हिज्र: 99)
अगर रमज़ान का रोज़ा समाप्त हो चुका है, तो उसके अलावा नफ्ल (ऐच्छिक) रोज़े भी हैं, जैसे- शव्वाल के महीने के छः रोज़े, प्रति सप्ताह सोमवार और जुमेरात के रोज़े, प्रति महीने तीन दिनों के रोज़े, आशूरा, अरफा, और मुहर्रम के महीने के रोज़े, इत्यादि।
अगर रमज़ान की रातों में तरावीह व तहज्जुद का पढ़ना खत्म हो गया, लेकिन तहज्जुद पढ़ना साल भर की रातों में धर्मसंगत है, और सुन्नत मुअक्कदह है जिस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने इस फरमान के
द्वारा बल दिया है: “तुम क़ियामुल्लैल को अपनाआो क्योंकि वह तुमसे पूर्व पुनीतों और सदाचारियों का स्वभाव
(मामूल) रहा है, तुम्हारे पालनहार की निकटता का कारण, बुराईयों को मिटाने वाला, गुनाह से रोकनेवाला और शरीर से बीमारी को दूर करने वाला है।” इसे तिर्मिज़ी और अहमद ने
रिवायत किया है।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: “फर्ज़ नमाज़ के बाद सबसे बेहतर नमाज़ क़ियामुल्लैल (तहज्जुइद) है।”
अगर मुसलमान बंदा क़ियामुल्लैल करना चाहता है तो उसे चाहिए कि
गुनाहों से दूर रहे, क्योंकि जो आदमी गुनाहों में लिप्त हो उसे क़ियामुल्लैल की तौफीक़ नहीं मिलती है।
क़ियामुल्लैल बहुत बड़ा सम्मान (शरफ्) है और पापी आदमी सम्मान का अधिकृत नहीं है।
एक आदमी ने हसन बसरी रहिमहुल्लाह से कहाः ऐ अबू सईद! मैं भला
चंगा रात बिताता हूँ, और क़ियामुल्लैल करना चाहता हूँ और अपने वुज़ू के पानी को तैयार रखता हूँ, तो क्या बात है कि मैं उठ नहीं पाता हूँ ? तो हसन ने कहाः तुम्हारे गुनाहों ने
तुम्हें बेड़ियां डाल दी हैं।
तथा फुज़ैल बिन अयाज़ ने फरमाया: अगर तुम रात को तहज्जुद पढ़ने
और दिन को रोज़ा रखने पर सक्षम न हो सको, तो जान लो कि तुम वंचित और जकड़े हुए
हो, तुम्हारे गुनाह ने तुम्हें जकड़ दिया है।
अब अगर ज़कातुल फित्र समाप्त हो गया, तो उसके अलावा अनिवार्य ज़कात भी है, . . तथा सामान्य सदक़ा व खैरात
का दरवाज़ा साल भर खुला हुआ है।
तथा क़ुरआन की तिलावत और उसमें मनन चिंतन करना रमज़ान के साथ ही
विशिष्ट नहीं है, बल्कि यह सब समय के लिए है।
इसलिए हर समय और हर ज़माने में दीन पर सुदृढ़ और जमे रहें ; क्योंकि नहीं मालूम कि मौत का फरिश्ता कब आ जाए, अतः इस बात से सावधान रहें
कि वह तुम्हारे पास गुनाह की हालत में आए।
पाँचवां : अधिक से अधिक इस्तिगफार (क्षमायाचना)
करें
क्योंकि प्रति नेकी के बाद हमारे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम का यही स्वभाव रहा है। इस अर्थ को खलीफा-ए-राशिद उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहिमहुल्लाह
ने अच्छी तरह समझा और उन्हों ने विभिन्न नगरों की ओर पत्र लिखकर उन्हें रमज़ान के महीने
का अंत इस्तिग़फार और सदक़े पर करने का आदेश दिया, उन्हों ने कहा:
तुम ऐसे ही कहो जैसा कि तुम्हारे बाप आदम अलैहिस्सलाम ने कहा:
﴿ رَبَّنَا ظَلَمْنَا
أَنفُسَنَا وَإِن لَّمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ
﴾ [الأعراف:23]
“ऐ हमारे पालनहार! हमने अपने ऊपर अत्याचार
किया है, और यदि तू ने हमें माफ न किया और हम पर दया न किया तो हम घाटा उठाने वालों में
से हो जायेंगे।” (सूरतुल आराफ: 23)
तथा ऐसे ही कहो जैसाकि नूह अलैहिस्सलाम ने कहा :
﴿ وَإِلاَّ تَغْفِرْ
لِي وَتَرْحَمْنِي أَكُن مِّنَ الْخَاسِرِينَ ﴾ [هود:47]
“और अगर तू ने मुझे क्षमा न किया और मेरे
ऊपर दया न किया, तो मैं घाटा पाने वालों में से हो जाऊँगा।” (सूरत हूद: 47).
तथा ऐसे ही कहो जैसाकि इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा :
﴿ وَالَّذِي أَطْمَعُ
أَن يَغْفِرَ لِي خَطِيئَتِي يَوْمَ الدِّينِ ﴾ [الشعراء:82]
“और जिससे मुझे आशा है कि वह बदला (यानी परलोक)
के दिन मेरे पाप को क्षमा करदेगा।” (सूरतुश्शुअरा: 82)
तथा ऐसे ही कहो जैसाकि मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा :
﴿ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ
نَفْسِي فَاغْفِرْ لِي ﴾ [القصص:16]
“मेरे पालनहार, मैं ने अपने ऊपर अत्याचार किया है, तो तू मुझे क्षमा कर दे।” (सूरतुल क़सस: 16)
तथा ऐसे ही कहो जैसाकि ज़ुन्नून (यानी यूनुस) अलैहिस्सलाम ने
कहा :
﴿ لَّا إِلَهَ إِلَّا
أَنتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنتُ مِنَ الظَّالِمِينَ ﴾ [الأنبياء:87]
“तेरे सिवाय कोई वास्तविक पूज्य नहीं, तू पवित्र है, निःसंदेह मैं ही अत्याचारियों (ज़ालिमों) में से हूँ।” (सूरतुल अंबिया: 87)
हसन बसरी रहिमहुल्लाह कहते हैं: “अधिक से अधिक इस्तिगफार
करो, क्योंकि तुम्हें पता नहीं कि दया कब अवतरति होती है।”
तथा लुक़मान अपने बेटे को वसीयत करते हुए कहते हैं : “ऐ मेरे बेटे, तू अपनी ज़ुबान को इस्तिगफार का आदी बना ले, क्योंकि अल्लाह तआला के लिए कुछ ऐसी
घड़ियाँ हैं जिनके अंदर वह किसी सवाली (मांगनेवाले) को नहीं ठुकराता।”
इसलिए हमें अधिक से अधिक इस्तिगफार करना चाहिए।
छठवां : सदैव अल्लाह का शुक्र करते रहें
अल्लाह तआला का अधिक से अघिक शुक्र करें कि उसने आपको रोज़े और
क़ियामुल्लैल की तौफीक़ प्रदान की, अल्लाह तआला ने रोज़े की आयत के अंत में फरमाया
है कि:
﴿ وَلِتُكْمِلُواْ
الْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُواْ اللّهَ عَلَى مَا هَدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
﴾ [البقرة:185]
“और ताकि तुम (रोज़े की) गिंती पूरी करो और
ताकि तुम अल्लाह की बड़ाई बयान करो इसपर कि उसने तुम्हारा मार्गदर्शन किया, और शायद कि तुम शुक्र करो।” (सूरतुत बक़रा: 185).
अर्थात उसने तुम्हें जो हिदायत और तौफीक़ की नेमत से सम्मानित
किया है उसपर उसका शुक्र अदा करो।
यही हमारे पुनीत पूर्वजों की परंपरा रही है कि वे अल्लाह की
नेमतों का सदैव शुक्र करने वाले थे, अल्लाह तआला ने अपने चुनीदा बंदों में
से सुदृढ़ संकल्प वाले संदेष्टाओं की यह सराहना की है कि वे बहुत शुक्र करनेवाले थे, नूह अलैहिस्सलाम के बारे में यह उल्लेख किया है कि “वह बहुत शुक्र करने वाला बंदा थे”, इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बारे में यह उल्लेख
किया है कि वह : “उसकी नेमतों का शुक्र करनेवाले थे”, तथा मूसा और मुहम्मद अलैहिमस्सलातो वस्सलाम से फरमाया : “शुक्र करनेवालों में से हो जाएं”, और वे दोनों वास्तव में ऐसे ही थे।
इसी तरह अल्लाह के नबी यूसुफ अलैहिस्सलाम को देखिए कि जब अल्लाह
ने उन्हें उनके माता पिता और भाईयों से मिला दिया और उनके लिए नेमत पूरी होगई तो उन्हों
ने अपने आपको मुलाक़ात की खुशी से निकाल कर अल्लाह की प्रशंसा और गुणगान करते हुए कहा
:
﴿رَبِّ قَدْ آتَيْتَنِي
مِنَ الْمُلْكِ وَعَلَّمْتَنِي مِنْ تَأْوِيلِ الأَحَادِيثِ فَاطِرَ السَّمَاوَاتِ
وَالأَرْضِ أَنْتَ وَلِيِّي فِي الدُّنْيَا وَالآخِرَةِ تَوَفَّنِي مُسْلِماً وَأَلْحِقْنِي
بِالصَّالِحِينَ ﴾ (يوسف:101).
“ऐ मेरे पालनहार! तू ने मुझे राज्य से हिस्सा
दिया है, और मुझे सपनों की ताबीर (स्वपनफल) का ज्ञान दिया है, हे आकाशों और धरती के पैदा करने वाले ! तू ही दुनिया और आखिरत में मेरा कारसाज़
(काम बनानेवाला) है, तू मुझे मुसलमान होने की हालत में मृत्यु दे और मुझे नेक लोगों में शामिल कर दे।” (सूरत यूसुफ: 101).
तथा सुलैमान बिन दाऊद अलैहिमस्सलाम, जिनका अल्लाह के यहाँ महान पद है अपने पालनहार की नेमतों का बहुत शुक्र करते थे, चुनाँचे जब उन्हों ने चींटी की बात सुनी कि वह अपनी जाति को सुलैमान की फौज से
सावधान कर रही है, तो उसकी बात (भाषा) को समझने की इस नेमत पर तुरंत अल्लाह के प्रति आभार प्रकट करने
लगे:
﴿رَبِّ أَوۡزِعۡنِيٓ
أَنۡ أَشۡكُرَ نِعۡمَتَكَ ٱلَّتِيٓ أَنۡعَمۡتَ عَلَيَّ وَعَلَىٰ وَٰلِدَيَّ وَأَنۡ
أَعۡمَلَ صَٰلِحٗا تَرۡضَىٰهُ وَأَدۡخِلۡنِي بِرَحۡمَتِكَ فِي عِبَادِكَ ٱلصَّٰلِحِينَ﴾
[النمل :19]
“ऐ मेरे पालनहार! तू मुझे तौफीक़ प्रदान कर कि जो उपकार तू ने मुझ पर और मेरे माँ
बाप पर किए हैं, उनका शुक्र अदा करूँ और यह कि ऐसे नेक काम करूँ जिस से तू खुश रहे, और मुझे अपनी कृपा से अपने नेक बंदों में शामिल कर ले।” (सूरतुन नम्ल: 19)
इसी तरह जब पलक झपकने से कम समय में सबा की रानी का सिंघासन
अपने पास मौजूद देखा तो फरमाया:
﴿هَٰذَا مِن فَضۡلِ
رَبِّي لِيَبۡلُوَنِيٓ ءَأَشۡكُرُ أَمۡ أَكۡفُرُۖ وَمَن شَكَرَفَإِنَّمَايَشۡكُرُ لِنَفۡسِهِۦۖ
وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيّٞ كَرِيمٞ ﴾
(النمل:40).
“यह मेरे पालनहार का उपकार है ताकि वह मुझे परखे कि क्या मैं शुक्र करता हूँ या
नाशुक्री करता हूँ। और जो कोई शुक्र करता है तो वास्तव में अपने लिए ही शुक्र करता
है, और जो कोई नाशुक्री करता है तो निःसंदेह मेरा पालनहार बड़ा बेनियाज़ (निस्पृह) और
बहुत दानशील है।”
(सूरतुन नम्ल: 40).
इसी तरह हमारे संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों
में सबसे अधिक अल्लाह का शुक्र करनेवाले थे, चुनाँचे संघर्ष, जद्दो जहद, धैर्य और बलिदान से भरपूर जीवन के बिताने के बाद भी रात को इतनी इबादत करते थे
कि आप के पाँव फट जाते थे। और जब आपसे पूछा गया कि आपके गुनाह बख्शे हुए हैं तो फिर
आप इतना संघर्ष क्यों करते है तो आप ने फरमाया: “क्या मैं शुक्र करने वाला बंदा न बनूँ?”
जब यह संदेष्टाओं का हाल है, तो उनके अलावा अन्य लोग
अल्लाह सर्वशक्तिमान का सदैव शुक्र करने और निरंतर इस्तिगफार करने के सबसे अधिक ज़रूरतमंद
हैं। शुक्र करने से नेमतों की हिफाज़त होती है और वे सदैव बनी रहती हैं, जबकि इस्तिगफार करने से अल्लाह तआला त्रुटियों और कोताहियों को क्षमा कर देता है।
सातवाँ : क्या आपका रोज़ा और क़ियामुल्लैल
क़बूल हुआ या नहीं ?
हमारे पुनीत पूर्वजों को अमल के क़बूल होने की चिंता स्वयं अमल
से अधिक होती थी, अली रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा दृढ़ संकल्प
के साथ काम करते थे, फिर जब वे काम से फारिग हो जाते थे तो उन्हें यह चिंता घेर लेती थी कि उनका अमल
क़बूल हुआ या नहीं। अली रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि: अमल के क़बूल होने की अमल से अधिक
चिंता करो, क्या तुम ने अल्लाह का यह फरमान नहीं सुना :
﴿ إِنَّمَا
يَتَقَبَّلُ اللَّهُ مِنَ الْمُتَّقِين﴾ (المائدة:27)
“अल्लाह तआला परहेज़गारों से ही क़बूल फरमाता है।” (सूरतुल मायदा: 27).
हम में से कौन है जो इन दिनों में इस बात की चिंता करता है कि
उसका अमल क़बूल हुआ या नहीं ? हम में से कौन है जो इस बात की दुआ करता
है कि अल्लाह तआला उसके रमज़ान को क़बूल फरमाए ?
हमारे पुनीत पूर्वजों का यह स्वभाव (मामूल) था कि वे छः महीना
इस बात की दुआ करते थे कि अल्लाह उन्हें रमज़ान का महीना नसीब करे, फिर वे छः महीना इस बात की दुआ करते थे कि अल्लाह तआला उनसे क़बूल फरमाए।
अली रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में आता है कि वह रमज़ान के महीने
की अंतिम रात में बाहर निकलते और अपनी ऊँची आवाज़ से कहते थे: काश कि मुझे पता होता
! कौन व्यक्ति मक़बूल है जिसे हम बधाई दें ?? और कौन महरूम है जिसे हम सांत्वना दें
?? तथा इसी प्रकार अब्दुल्लाह
बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु भी करते थे।
अमल के क़बूल होने की एक बड़ी निशानी एक नेकी के बाद दूसरी नेकी
का करना है, अगर रमज़ान के बाद भी आदमी नेकी पर क़ायम रहता है और बराबर नेकियाँ करता रहता है
तो यह उसके रमज़ान के अमल के क़बूल होने और अल्लाह तआला के उस व्यक्ति से खुश होने की
पहचान है।
अल्लाह तआला से दुआ है कि हमारे रोज़े और क़ियामुल्लैल को क़बूल
फरमाए, इस महीने को हमारे हक़ में गवाह बनाए हमारे खिलाफ गवाह न बनाए, और हमें अपने नरक से मुक्ति प्रदान किए हुए, सफलता प्राप्त और मक़बूल
बंदों में से बनाए।
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