अगर ईद जुमा के दिन पड़ जाए तो क्या करना चाहिए



ईद का दिन जुमा के दिन पड़ने के बारे में स्थायी समिति का फत्वा
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है, तथा अल्लाह की दया और शांति अवतरित हो उस अस्तित्व पर जिसके बाद कोई सन्देष्टा नहीं, तथा आपकी संतान और साथियों पर ... अम्मा बाद ! इस बारे में बहुत प्रश्न किया जाने लगा है कि यदि ईद का दिन जुमा के दिन पड़ जाए। चुनाँचे दो ईदें एक साथ हो जाएं : ईदुल फित्र या ईदुल अज़हा, जुमा की ईद के साथ एकत्रित हो जाए जो कि सप्ताह की ईद है, तो क्या ईद की नमाज़ में उपस्थित होने वाले पर जुमा की नमाज़ अनिवार्य है या कि ईद की नमाज़ उसके लिए पर्याप्त होगी और वह जुमा के बदले ज़ुहर की नमाज़ प़ढ़ेगा?
और क्या मस्जिदों में ज़ुहर की नमाज़ के लिए अज़ान दी जायेगी या नहीं? इसके अलावा प्रश्न में वर्णित अन्य बातें। इस पर वैज्ञानिक अनुसंधान और इफ्ता की स्थायी समिति ने निम्नलिखित फत्वा जारी करना उचित समझा :
उत्तर :
इस मसअले के बारे में मरफूअ हदीसें और मौक़ूफ आसार वर्णित हैं जिनमें से कुछ यह हैं :
1-  ज़ैद बिन अरक़म रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि मुआविया बिन अबू सुफयान रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे पूछा : क्या आप अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ दो ईद में उपस्थित हुए हैं जो दोनों एक ही दिन में एकत्रित हुई हों? उन्हों ने कहा : जी हाँ। उन्हों ने पूछा : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कैसे किया? उन्हों ने कहा : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ईद की नमाज़ पढ़ाई फिर जुमा में छूट दे दी। चुनाँचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (जो पढ़ना चाहे पढ़े।) इसे अहमद, अबू दाऊद, नसाई, इब्ने माजा, दारमी, तथा हाकिम ने ‘‘अल-मुसतदरक'' में रिवायत किया है और कहा है कि : इस हदीस की इसनाद सहीह है और इसे उन दोनों (यानी बुखारी व मुस्लिम) ने नहीं उल्लेख किया है, तथा मुस्लिम की शर्त पर उसकी एक शाहिद भी है। तथा इमाम ज़हबी ने उस पर सहमति व्यक्त की है और नववी ने ‘‘अल-मजमूअ''  में कहा है कि : उसकी इसनाद जैयिद (अच्छी) है।
2- उसकी उपर्युक्त शाहिद अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘तुम्हारे इस दिन में दो ईदैं एकत्रित हो गई हैं, अतः जो चाहे उसके लिए यह जुमा की नमाज़ से किफायत करेगी। और हम तो जुमा क़ायम करनेवाले हैं।'' इसे हाकिम ने रिवायत किया है जैसाकि गुज़र चुका, तथा अबू दाऊद, इब्ने माजा, इब्नुल जारूद और बैहक़ी वगैरहुम ने रिवायत किया है।
3- इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा क हदीस है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समयकाल में दो ईदैं एकत्रित हो गईं तो आप ने लोगों को नमाज़ पढ़ाई फिर फरमाया : ‘‘जो व्यक्ति जुमा की नमाज़ में आना चाहे वह उसमें आए, और जो उससे पीछे रहना चाहे वह पीछे रहे।'' इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है, और तबरानी ने ‘‘अल-मोजमुल कबीर'' में इन शब्दों के साथ रिवायत किया है: ‘‘ अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समयकाल में दो ईदें एकत्रित हो गईं : ईदुल फित्र और जुमा का दिन, तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें ईद की नमाज़ पढ़ाई, फिर उनकी ओर अपने चेहरे क साथ मुतवज्जेह हुए और फरमाया : ‘‘ऐ लोगो! तुम ने भलाई और अज्र को पा लिया है और हम जुमा क़ायम करनेवाले है। अतः जो हमारे साथ जुमा में उपस्थित होना चाहे वह जुमा में उपस्थ्ति हो, और जो अपने घर वालों के पास वापस लौटना चाहे वह लौट जाए।''
4- इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘तुम्हारे इस दिन में दो ईदैं एकत्रित हो गई हैं, अतः जो चाहे उसके लिए यह जुमा की नमाज़ से किफायत करेगी। और हम इन शा अल्लाह जुमा क़ायम करनेवाले हैं।'' इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है, और अल-बोसीरी ने कहा है कि : उसकी इसनाद सहीह है और उसके रिवायत करनेवाले भरेसेमंद हैं।
5- ज़कवान बिन सालेह की मुर्सल हदीस है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समयकाल में दो ईदें एकत्रित हो गईं : जुमा का दिन और ईद का दिन, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने (ईद की) नमाज़ पढ़ाई, फिर खड़े हुए और लोगों को खुत्बा दिया, और फरमाया : ‘‘तुम ने ज़िक्र और भलाई को पा लिया है और हम जुमा क़ायम करनेवाले है। अतः जो बैठना चाहे वह - अपने घर में - बैठे, और जो जुमा में उपस्थित होना चाहे वह जुमा में उपस्थ्ति हो।'' इसे बैहक़ी ने सुनन अल-कुब्रा में रिवायत किया है।
6- अता बिन अबी रिबाह से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : हमें इब्नुज़ ज़ुबैर ने एक जुमा के दिन में दिन के प्रथम भाग में ईद की नमाज़ पढ़ाई। फिर हम जुमा की नमाज़ के लिए गए तो वह निकल कर हमारे पास नहीं आए। चुनाँचे हम ने अकेले ही नमाज़ पढ़ी। उस समय इब्ने अब्बास तायफ़ में थे। जब वह वापस आए तो हमने उनसे इसका चर्चा किया तो उन्हों ने कहा : ‘‘उन्हों ने सुन्नत के अनुसार किया।'' इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है, और इब्ने खुज़ैमा ने इसे एक दूसरे शब्द के साथ उल्लेख किया है और उसके अंत में यह वृद्धि की है: इब्नुज़ ज़ुबैर ने कहा : ‘‘ मैं ने उमर बिन खत्ताब को देखा कि जब दो ईदें इकट्ठी हो जातीं तो इसी तरह करते।''
7- तथा सहीह बुखारी और मुवत्ता इमाम मालिक में अबू उबैद मौला इब्ने अज़हर से रिवायत है कि अबू उबैद ने कहा : मैं उसमान बिन अफ्फान के साथ दो ईदों में उपस्थित हुआ, और वह जुमा का दिन था। तो उन्हों ने खुत्बा से पहले नमाज़ पढ़ाई फिर खुत्बा दिया, और फरमाया : ‘‘ऐ लोगो! इस दिन में तुम्हारे लिए दो ईदैं इकट्ठी हो गई हैं, अतः जो अवाली में से जुमा की प्रतीक्षा करना चाहे वह प्रतीक्षा करे, आर जो वापस लौटना चाहे तो मैं ने उसे अनुमति प्रदान कर दी है।''
8- अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि जब दो ईदें एक ही दिन में इकट्ठी हो गईं तो फरमाया : ‘‘ जो आदमी जुमा में उपस्थित होना चाहे वह जुमा में उपस्थित हो, और जो बैठना चाहे वह बैठा रहे।'' सुफयान कहते हैं : अर्थात: अपने घर में बैठे। इसे अब्दुर्रज़्ज़ाक़ ने अल-मुसन्नफ में रिवायत किया है और इसी के समान इब्ने अबी शैबा के यहाँ भी है।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक पहुँचने वाली इन हदीसों के आधार पर तथा कई एक सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम तक सीमित इन आसार के आधार पर, तथा विद्वानों की बहुमत ने इन हदीसों की समझ के बारे में जो फैसला किया है उसके आधार पर, समिति ये अहकाम बयान करती है :
1-      जो व्यक्ति ईद की नमाज़ में उपस्थित हुआ है, उसके लिए जुमा की नमाज में उपस्थित न होने की रूख्सत है। तथा वह जु़हर के समय उसकी जगह ज़ुहर की नमाज़ पढ़ेगा। यदि उसने अज़ीमत को अपनाते हुए लोगों के साथ जुमा की नमाज़ पढ़ी तो यह बेहतर है।
2-       जो व्यक्ति ईद की नमाज़ में उपस्थित नहीं हुआ है, उसे यह रूख्सत शामिल नहीं होगी। इसलिए उससे जुमा की नमाज़ में उपस्थित होने की अनिवार्यता समाप्त नहीं होगी। उसके के ऊपर जुमा की नमाज़ के लिए मस्जिद आना अनिवार्य है। यदि उतनी संख्या मौजूद नहीं है जिससे जुमा की नमाज़ स्थापित की जाती है तो उसकी जगह ज़ुहर की नमाज़ पढ़ेगा।
3-      जुमा की मस्जिद के इमाम पर उस दिन जुमा की नमाज़ क़ायम करना अनिवार्य है यदि उतनी संख्या में लोग उपस्थित होते हैं जिनसे जुमा की नमाज़ स्थापित होती है, ताकि जो उसमें उपस्थित होना चाहे उपस्थित हो और वह भी जो ईद की नमाज़ में उपस्थित नहीं हुआ था, नहीं तो ज़ुहर की नमाज़ पढ़ी जायेगी।
4-      जो आदमी ईद की नमाज़ में उपस्थित हुआ है और वह जुमा में उपस्थित न होने की रूख्सत पर अमल कर रहा है तो वह ज़ुहर का समय होने के बाद उसकी जगह पर ज़ुहर की नमाज़ पढ़ेगा।
5-      इस समय अज़ान देना केवल उन्हीं मस्जिदों में धर्मसंगत है जिनमें जुमा की नमाज़ स्थापित की जाती है, चुनाँचे उस दिन ज़ुहर की नमाज़ के लिए अज़ान देना धर्मसंगत नहीं है।
6-      यह कहना कि जो आदमी ईद की नमाज़ में उपस्थित हुआ है उससे उस दिन जुमा की नमाज़ और ज़ुहर की नमाज़ समाप्त हो जाती है, सही नहीं है। इसीलिए विद्वानों ने इस कथन को छोड़ दिया औ इसके गलत होने और विचित्र होने का हुक्म लगाया है, क्योंकि वह सुन्नत के विरूद्ध है और यह बिना किसी प्रमाण के अल्लाह के एक फरीज़े को समाप्त कर देती है। शायद इसके कहनेवाले को इस मुद्दे में वर्णित सुनन व आसार (हदीसों) नहीं पहुँचे जिनमें ईद की नमाज़ में उपस्थिन होने वाले को जुमा की नमाज़ में उपस्थित न होने की छूट दी गई है, और यह कि उसके ऊपर उसकी जगह ज़ुहर की नमाज़ पढ़ना अनिवार्य है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
तथा अल्लाह तआला हमारे ईश्दूत मुहम्मद, उनकी संतान और उनके साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।''
इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति
शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह आलुश्शैख .. शैख अब्दुल्लाह बिन अब्दुर्रहमान अल-गुदैयान  .. शैख बक्र बिन अब्दुल्लाह अबू ज़ैद ... शैख सालेह अल-फौज़ान  

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